बात मधेसी भाषा की: मैथिली, हिन्दी या मधेशी भाषा?
- कासिन्द्र यादव
पिछले कुछ दिनोंसे कुछ लोग “मैथिली भाषा” को सामन्ती जात के भाषा के रुपमे परिभाषित करते हुए इसके जगह “मधेसी भाषा” का वकालत कर रहे है । वैसे मधेशी भाषाको किसी भी भाषा बिज्ञ द्वारा औपचारिकता नहीं दिया गया है । लेकिन ईसके बारेमे कम से कम एक औपचारिक रुपमे चर्चा शुरु हुआ है । इसके नाम से ही यह जाहिर है कि ये कोई एक भाषा न होकर मधेस मे बोली जाने बाली सारे भाषाऔं का सम्मीलित समुह होना चाहिए ।
इस तरह का प्रयोग नवीन नही है । इससे पहले भी ‘हिन्दुस्तानी भाषा’ के रुपमे हिन्दी और उर्दु को जाना जाता था । ऐसा ही अग्रेंज भाषा बैज्ञानिक सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने Linguistic survey of India मे बर्तमान विहार और दक्षिण पश्चिम उतर प्रदेश मे बोली जाने वाले भाषाओं के सम्मलित स्वरुपको ‘बिहारी भाषा’ नाम दे दिया । बिहारी भाषा मे अगिंका, भोजपुरी, मगधी, मैथिली, माझी और कुछ थारु भाषा सहित स्थानीय स्तर बोली जाने वाली कुछ और भाषाएँ भी सम्मलित है । हिन्दी सहित ये सारे भाषा Indo-Aryan Language के Dialect Continuum है । Indo Aryan Prakriti से दुसरे भाषाओं का भी जन्म हुआ है जैसे-सिन्धी, गुजराती, असामी उडिया, नेपाली, मराठी और पंजावी मगर इन सब को Dialect Continuum नही माना जाता है ।
मधेस मे बोली जाने वाली लगभग सारे भाषा – मैथिली, भोजपुरी र अवधि सहित थरुहट और मधेस के जनजाति भाषा के विभिन्न स्वरुप Indo Aryan Language के Dialect Continuum है । इसलिए इन सब को ‘मधेसी भाषा’ समूह मे रखा जा सकता है । लेकिन इस पर गम्भिर सोध की जरुरत है ।
मधेसी भाषा कि संभावना मे ‘मैथिली भाषा’ निश्चित रुपसे महत्त्वपूर्ण स्थान होगा । मैथिली उत्तर-पुर्व बिहार सहित मधेस के पुर्वीय जिल्ला मे बोली जाती है । बर्ष २००३ मे इसको भारतिय संविधान कि ८ वीं अनुसूची मे सम्मीलित किया गया है । नेपाल मे इसको अधिकारीक भाषा का सम्मान प्राप्त है । भारत मे लगभग ५ करोड और मधेश मे ३५ लाख से ज्यादा लोग इसको मातृभाषा के रुपमे बोलते है । सन् १९ वी सदी मे भाषाविज्ञ सब मैथलीको पूर्वीय हिन्दी भाषा (Eastern Hindi Language) का ही एक dialect सम्झाता था । मगर सर ग्रियर्सन इसको फरक भाषा के रुपमे पहिचान की और उन्होने मैथली व्याकरण कि ‘An Introduction to the Maithili Grammar of North Bihar’ नामक किताब प्रकशित किया । ग्रियर्सन मैथली को एक अलग भाषा के रुपमे पहिचान देने के अथक प्रयास के बाबजुद केल्लंग जैसा विद्धान मैथली को हिन्दि का ही एक Dialect मानते रहे । मगर ज्यदातर मैथली भाषी विद्धानों ने मैथली को हिन्दी और अन्य बिहारी भाषाओ से अलग और स्वतन्त्र मनाते रहे है ।
इतिहास मे बहुत ही समृद्ध रह चुकी मैथली भाषा एक ओर सत्ता और बजार से लम्बा समय कि उपेक्षा और दुसरी ओर मिथिला का सांस्कृतिक सम्भ्रान्त का अभिजात्य प्रवृति और बहिष्करणवादी निति के वजह से बहुसंख्यक आमजन से कटते चले गये है। मैथिली भाषा के संरक्षण और विकास के लिए सन् १९१० मे स्थापित ‘मैथिली महासभा’ में सिर्फ ब्राह्मण और कायस्थ जाति के व्यक्ति ही सदस्य हो सकते थे । मैथिली भाषा के विकास मे अनुपम योगदान के बाबजुद मैथिली सांस्कृतिक सम्भ्रान्तों के भाषा के सवाल पर भी शुद्धतावादी नीति के वहज से कुछ सिमित लोग के मैथिली बोली से बहुसंख्यक जन के बोली अलग होते चले गए । आज अवस्था ऐसा है के मैथिली बोलि मे व्यापक विविधता और भिन्नता पाई जाति है और मैथिली भाषा के बहुत सारे dialects पाए जाते है जो अपने आप को अलग भाषा के रुप मे दावा करने लगे है । मैथिली भाषा के dialect सोतिपुरा का प्रयोग मधुवनी और दरभंगा मे होता है और जनकपुर के आसपास के लोग भी इसका प्रयोग करते है । बज्जिका बिहार के कुछ भाग के अलावा मधेश के रौतहट, सर्लाही और महोत्तरी, और ठेठी सुनसरी और मोरंग मे बोली जाती है । वैसे हि बाँतर, बर्मेली, मुसर और तेती नेपाल मे बोली जाती है ।
मैथिलीको कुछ जात के भाषा के रुपमे परिभाषित करना या मधेस से बाहर का भाषा कहना अज्ञानता है और यह किसि भी प्रकार से उपयुक्त नहि है । प्राचीन काल से ही मधेस के पुर्वीय भुभाग मे इसको मातृभाषा के रुप मे प्रयोग करते आ रहे है । अभि भी नेपाल मे नेपाली भाषा के बाद मैथिली सर्वाधिक लोगो द्वारा मातृभाषा के रुपमे बोली जाने वाला भाषा है । मगर मैथिली भाषा के सम्भ्रान्तीय स्वरुपमे व्यापक सुधार करते हुए इसको सिमित सांस्कृतिक सम्भ्रान्तीय दायरा से निकाल कर आमजन के भावना, बोली और जनजीवन से जोडना अति आवश्यक है ।
हिन्दी सहित मैथिली और मधेसका अन्य भाषा (भोजपुरी, अवधी) Indo-Aryan Language का dialect continuum है । इसलिए मधेस के सन्दर्भ मे हिन्दी भाषा स्थानीय मातृभाषाको क्षति किए विना स्वभाविक रुप से सम्पर्क भाषाका भुमिका निर्वाह कर सकता है । जो नेपाली सहित अन्य भाषा के द्वारा सम्भव नहीं हो सकता है। अत: मधेस मे मातृभाषा के रुप मे बोली जाने वाली प्रत्येक भाषा को उचित स्थान देते हुए हिन्दीको सम्पर्क भाषा के रुपमे प्रयोग करना उपयुक्त रहेगा।